समकालीन हिन्दी ग़ज़लकार -एक अध्ययन

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रविवार, 12 मई 2013

आज का दोहा

आज का दोहा 


चलो एक चिट्ठी लिखें, आज वक्त के नाम
पूछें दुःख का सिलसिला , होगा कहाँ तमाम

अजब सियासत देश की , गजब आज का दौर 
ताला कोई और है, चाबी कोई और

ये आए या वो गए, सबने चूसा खून
कौन गड़रिया छोड़ता, किसी भेड़ पर ऊन

पुलिस पकड़ कर ले गयी सिर्फ उसी को साथ
आग बुझाने में जले जिसके दोनों हाथ

आया तानाशाह का , आज सख्त आदेश
अनशन पर हो जाएगा , स्युसाइड का केस

बिगड़ न जाए चेहरा, रखता हरपल ध्यान
घूम रहा वो पहन कर, कलफ लगी मुस्कान

केवल दु:ख सहते रहो , यही नहीं है कार्य
अपने दु :ख को शब्द भी, देना है अनिवार्य

वह सचमुच थी 'निर्भया', मानी कभी न हार
उजियारा संचित किया उसने काजल पार

जा, बन जा विद्रोहिणी, और न रह मासूम
माँ ने बेटी से कहा, उसका माथा चूम

पृष्ठ पृष्ठ पर सनसनी , मार काट , व्यभिचार
आँखें घायल कर गया , रोज़ सुबह अख़बार

इसकी ईंटें भुरभुरी , और हुईं बेकार
ये घर दोबारा बना , छोड़ मरम्मत यार

अपने दिल से बात कर, उससे पूछ सवाल
वह गीता का कृष्ण है , जाने सबका हाल