हरेराम समीप
समकालीन हिन्दी ग़ज़लकार -एक अध्ययन
संपर्क:
395 सैक्टर - 8,
फ़रीदाबाद,
हरियाणा,
121006
ईमेल:
sameep395@gmail.com
शनिवार, 11 अगस्त 2012
हाइकु
नया स्वाँग ले
दुख बहुरूपिया
रोज आ जाए
चाक पे रक्खे
गीली मिट्टी, सोचूँ मैं
गढ़ूँ आज क्या
कौन छंद में
दुख की धड़कन!
तुझको बांधू
बस ये चाहूँ
बहे मेरी आँखों से
तेरा ये दुख
कवि के लिए
ये दुख और पीड़ा
अक्षय ऊर्जा
हे प्रभु आज!
मेरे घर फाँके हैं
कोई न आए
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