समकालीन हिन्दी ग़ज़लकार -एक अध्ययन

संपर्क: 395 सैक्टर - 8, फ़रीदाबाद, हरियाणा, 121006

ईमेल: sameep395@gmail.com

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

ग़ज़ल 


दावानल सोया है कोई जहाँ एक चिंगारी में 

ठीक वहीं पर हवा व्यस्त है तूफॉँ की तैयारी में 


जिद्दी बच्चे जैसा मौसम समझे क्या समझाये क्या

जाने क्या क्या बोल रहा है हिलकारी सिसकारी में


सागर के भीतर कि लहरें अक्सर बतला देती हैं 

कुंठा का रस्ता खुलता है हिंसा कि औसरी में 


वो लौटी है सूखी आंखे टार टार दामन लेकर

जाने उसने क्या देखा था सपनों के व्यापारी में 


जब से यहाँ नगर में आया आकार ऐसा उलझा हूँ 

भूल गया हूँ घर ही अपना घर कि जिम्मेदारी में   


अपने छोटे होते कपड़े बच्चों को पहनता हूँ 

तहकर के रक्खे  जो मैंने आँखों कि अलमारी में 


तेरहवी के दिन बेटों के बीच बहस बस इतनी थी

किसने कितने खर्च किए हैं अम्मा की बीमारी में 


इससे बेहतर काम नहीं है इस आकाल के मौसम में 

आओ मिलकर खुशबू खोजें काँटों वाली क्यारी में 





1 टिप्पणी:

  1. आप की रचना पर टिप्पणी करना सूरज को दिया दिखाने वाली बात हो जाएगी!
    धन्यवाद जो आप मेरे ब्लॉग पर आये !
    आशीर्वाद बनाये रखियेगा!

    जवाब देंहटाएं