समकालीन हिन्दी ग़ज़लकार -एक अध्ययन

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शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

मुक्तक में दो बयान || गरीब और अमीर 


आज हुई न अगर बोहनी दिन छल जायेगा

बिन पैसे के आस का यह सूरज ढाल जायेगा

मिट्टी का बस एक खिलौना ले लो बाबूजी

मेरे घर भी आज शाम चूल्हा जल जायेगा 


वो कहता कुछ पाने को कुछ खोना पड़ता है

धंधे में तो हँसना लड़ना रोना पड़ता है 

बड़े ठाठ हैं खूब मजे हैं मुश्किल बस इतनी

रोज नींद की गोली खाकर सोना पड़ता है

 

 

 

 

 

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